चोटी की पकड़–23

छह



यूसुफ फतहयाब थे-उनकी शर्तें कबूल कर ली गईं। गुरूर से कदम उठ रहे थे। गुलशन गुलाबबाड़ी में ले गई। नसीम की तरफ उँगली उठाकर कहा, "आप !"

नसीम उठकर खड़ी हो गई। बड़ी अदा से कहा, "आदाब अर्ज।"

यूसुफ बहुत खुश हुए। जवाब में हाथ उठाया, वह हाथ जैसे सरकार का हो।

नसीम ने पूछा, "हुजूर का मिज़ाज अच्छा?"

"खैरियत है।" थानेदार साहब ने जवाब दिया।

कुर्सी की तरफ उँगली का हल्का इशारा करके नसीम ने कहा, "हुजूर की कुर्सी।"

थानेदार साहब संजीदगी से बैठे। नसीम भी बैठी। बैठते हुए कहा, "हम हुक्म की तामील करने वाले !"

थानेदार साहब बहुत खुश हुए। सोचा, रंग चढ़ गया; बाजी हाथ है। इधर-उधर देखा। गुलशन हट गई थी।

"आप एजाज बाई हैं?" थानेदार ने पूछा।

"हुक्म"

"काफी अरसा हुआ। दूसरा काम है। वक्त ज्यादा नहीं।" नसीम खामोश रही। थानेदार को संदेह नहीं हुआ। वह सुंदरी और खानदानी दिख रही थी। बातचीत साफ।

"आपकी शिकायत है।"

नसीम आँखें फाड़कर देखने लगी।

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